#21days_course
Day -3
उत्तर की रूपरेखा तैयार करना
उत्तर-लेखन प्रक्रिया के दूसरे चरण के अंतर्गत उत्तर की एक संक्षिप्त रूपरेखा बनाई जा सकती है। कई अभ्यर्थी इस प्रक्रिया का प्रयोग करने से बचते हैं और समय बचाने के लिये सीधे उत्तर लिखने की शुरुआत कर देते हैं। अगर उनकी लेखन क्षमता बहुत सधी हुई न हो तो तय मानकर चलिये कि उनके उत्तर में अव्यवस्था तथा बिखराव का आना स्वाभाविक है। बेहतर यही है कि अभ्यर्थी दस मिनट की जगह आठ मिनट में ही उत्तर लिखे किंतु उसका उत्तर बिल्कुल सधा हुआ हो। बहुत अच्छी लेखन क्षमता वाले कुछ अभ्यर्थियों का स्तर तो इतना ऊँचा होता है कि वे प्रश्न को पढ़ते ही मन-ही-मन उत्तर की रूपरेखा तैयार कर लेते हैं और सीधे उत्तर-लेखन की शुरुआत कर देते हैं। पर यह क्षमता अर्जित करना एक लंबी और श्रमसाध्य प्रक्रिया है जिसे हर अभ्यर्थी में नहीं पाया जा सकता।नए अभ्यर्थियों के लिये यही बेहतर है कि वे उत्तर की शुरुआत करने से पहले थोड़ा सा समय रूपरेखा या Synopsis बनाने पर खर्च करें।रूपरेखा बनाने का अर्थ यह है कि उत्तर से संबंधित जो बिंदु अभ्यर्थी के दिमाग में हैं, उन्हें किसी रफ कागज़ पर लिखकर व्यवस्थित कर लिया जाए। ज़रूरी नहीं है कि हर बिंदु को लिखा ही जाए, यह भी हो सकता है कि अभ्यर्थी रेखाचित्र जैसे किसी फॉर्मेट में उसे तैयार कर ले। उदाहरण के लिये, यदि प्रश्न है कि “एक कुशल नेतृत्व की वज़ह से एक दुरूह संभावना को यथार्थ में परिवर्तित किया जा सका। भारतीय रियासतों के एकीकरण के संदर्भ में इस कथन पर चर्चा कीजिये।” तो इसकी संभावित रूपरेखा कुछ इस प्रकार बनाई जानी चाहिये-
भूमिकाः पटेल और बिस्मार्क की तुलना।
दुरूह संभावनाः 1947 की स्थिति, अंग्रेज़ों की योजना, कई रियासतों/राजाओं की स्वतंत्र रहने की इच्छा आदि।
कुशल नेतृत्वः पटेल की कार्य-क्षमता व कार्य-शैली का संक्षिप्त वर्णन।
निष्कर्षः पटेल की भूमिका को बिस्मार्क तथा गैरीबाल्डी आदि की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध करना।
शुरू में अभ्यर्थी इसी फॉर्मेट पर रूपरेखा बनाते हैं। धीरे-धीरे वे इस प्रक्रिया के अभ्यस्त हो जाते हैं और सिर्फ कुछ टूटे-फूटे शब्द लिखने से भी उनका काम चल जाता है। आपको मुख्य परीक्षा में बैठने से पहले रूपरेखा निर्माण का इतना अभ्यास कर लेना चाहिये कि परीक्षा भवन में केवल कुछ आधे-अधूरे संकेतों से ही रूपरेखा संबंधी कार्य पूरा हो सके।परीक्षा भवन में समय के दबाव को देखते हुए यह स्वाभाविक है कि प्रत्येक उत्तर को लिखने से पहले अभ्यर्थी उत्तर की रूपरेखा नहीं बना पाता। अगर आपके साथ भी गति का ऐसा संकट हो तो बेहतर होगा कि 20 में से शुरुआती 7-8 प्रश्नों का उत्तर आप संक्षिप्त रूपरेखाओं के आधार पर लिखें और बाद के प्रश्नों के उत्तर सीधे लिख दें।
उत्तर लिखना
एक अच्छा उत्तर वह है जो प्रश्न का उत्तर है। प्रश्न की रूपरेखा तैयार हो जाने के बाद अभ्यर्थी को वास्तविक उत्तर-लेखन करना चाहिये।एक अच्छे उत्तर की मुख्यत: दो विशेषताएँ होती हैं- प्रामाणिकता तथा प्रवाह। प्रामाणिकता का अर्थ है कि उत्तर में ऐसे ठोस तथ्य और तर्क विद्यमान होने चाहियें जिनसे प्रश्न की वास्तविक मांग पूरी होती हो अर्थात् परीक्षक को उत्तर पढ़कर यह महसूस होना चाहिये कि अभ्यर्थी ने विषय का गंभीर अध्ययन किया है। प्रवाह का अर्थ है कि उत्तर के पहले शब्द से अंतिम शब्द तक ऐसी क्रमबद्धता होनी चाहिये कि परीक्षक को उत्तर पढ़ते समय बीच में कहीं भी रुकना न पड़े।एक अच्छे उत्तर-लेखन के संबंध में प्रायः प्रत्येक अभ्यर्थी के मन में कुछ जिज्ञासाएँ अनिवार्य रूप से होती हैं जिनका समाधान करने का प्रयास किया गया है।
शब्द सीमा का पालनः
प्रायः अभ्यर्थियों के मन में जिज्ञासा होती है कि उन्हें दी गई शब्द-सीमा के अंदर ही उत्तर लिखना है या इसमें थोड़ी बहुत छूट ली जा सकती है? अगर हाँ, तो कितनी?इस प्रश्न का उत्तर जानने से पहले यह समझ लेना चाहिये कि लोक सेवा आयोग के लिये व्यावहारिक तौर पर यह संभव नहीं है कि वह हर अभ्यर्थी के उत्तरों की शब्द संख्या को गिनने की व्यवस्था कर सके। अतः अभ्यर्थियों को सबसे पहले इस दबाव से मुक्त हो जाना चाहिये कि उनके एक-एक शब्द की गणना की जाती है।इस संबंध में एक सच यह भी है कि भले ही आयोग शब्दों की गणना न करता हो, पर परीक्षक अपने अनुभवों के आधार पर उत्तर-पुस्तिका देखते ही यह अनुमान लगा लेता है कि उत्तर में शब्दों की संख्या लगभग कितनी है। शब्दों की संख्या बहुत अधिक या बहुत कम होने पर ही परीक्षक का ध्यान उस ओर जाता है। ऐसी स्थिति में उसके पास यह विवेकाधीन शक्ति होती है कि वह अभ्यर्थी को इस गलती के लिये दंडित करे या नहीं? सार यह है कि शब्दों की सीमा का थोड़ा-बहुत उल्लंघन करने में समस्या नहीं है किंतु यह उल्लंघन 10-20% से अधिक नहीं होना चाहिये।कुछ अभ्यर्थी इस बात को लेकर भी परेशान रहते हैं कि शब्दों की गणना में ‘है’, ‘था’, ‘चाहिये’ आदि शब्द ों की गणना की जाती है या नहीं? उनमें से कुछ यह दावा भी करते हैं कि इन्हें उत्तर की शब्द-सीमा में शामिल नहीं किया जाता। वस्तुतः यह एक भ्रांति है। शब्दों की गणना में सभी प्रकार के शब्द शामिल होते हैं, चाहे वे योजक शब्द हों या अन्य शब्द। हाँ, यह ज़रूर है कि कोष्ठक में लिखे गए शब्दों को प्रायः शामिल नहीं किया जाता। इसी प्रकार, अगर कहीं समास भाषा का प्रयोग किया जाता है तो समास में आने वाले दोनों शब्दों को हाइफन की वज़ह से प्रायः एक शब्द ही मान लिया जाता है।
बिंदुओं में लिखें या पैराग्राफ में?
यह भी अधिकांश उम्मीदवारों की एक सामान्य जिज्ञासा है कि उन्हें उत्तर-लेखन के अंतर्गत बिंदुओं का प्रयोग करना चाहिये या नहीं? वस्तुतः इस प्रश्न का उत्तर हाँ या नहीं में देना संभव नहीं है। यह निर्णय इस बात पर निर्भर करता है कि प्रश्न की प्रकृति क्या है?अगर प्रश्न की प्रकृति ऐसी है कि उसके उत्तर में विभिन्न तथ्यों या बिंदुओं को सूचीबद्ध किये जाने की आवश्यकता है तो निस्संदेह उसमें बिंदुओं का प्रयोग किया जाना चाहिये। किंतु अगर प्रश्न की प्रकृति शुद्ध विश्लेषणात्मक है तो बिंदुओं के प्रयोग से बचना आवश्यक है। ऐसा उत्तर पैराग्राफ पद्धति के अनुसार लिखना ही ठीक रहता है।उदाहरण के तौर पर, अगर यह प्रश्न पूछ लिया जाए कि ‘भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान घटने वाली सबसे महत्त्वपूर्ण पाँच घटनाएँ कौन सी थीं?’ तो इसके उत्तर में बिंदुओं का प्रयोग किया जाना चाहिये। एक छोटी-सी भूमिका लिखने के बाद अभ्यर्थी को सीधे 1-5 तक बिंदु बनाकर एक-एक तथ्य प्रस्तुत करते जाना चाहिये।अगर यह प्रश्न पूछ लिया जाए कि “जहाँ महात्मा गांधी जाति व्यवस्था की कुरीतियों पर कोई गंभीर चोट नहीं कर सके, वहीं डॉ. अम्बेडकर ने जाति व्यवस्था के मूल पर प्रहार किया। स्पष्ट कीजिये”। इस प्रश्न की स्पष्ट अपेक्षा है कि उत्तर का पहला पैरा महात्मा गांधी के संबंध में और दूसरा पैरा डॉ. अम्बेडकर के संबंध में लिखा जाना चाहिये और दोनों ही पैराग्राफों में सिर्फ एक-एक बिंदु की व्याख्या किये जाने की ज़रूरत है। (स्पष्ट है कि ऐसे उत्तरों में बिंदुओं या शीर्षकों की भूमिका नहीं होती। यदि हम अनावश्यक बिंदुओं का प्रयोग करेंगे तो निस्संदेह नुकसान में ही रहेंगे)।
रेखाचित्रों का प्रयोग करें या नहीं?
अभ्यर्थियों के मन में एक दुविधा इस बात को लेकर भी रहती है कि उन्हें किसी उत्तर में रेखाचित्र (जैसे पाई डायग्राम, वेन डायग्राम, तालिका, फ्लो-चार्ट) आदि का प्रयोग करना चाहिये या नहीं?इस प्रश्न का उत्तर यह है कि निबंध तथा विश्लेषणात्मक प्रश्नों में प्रायः इस प्रवृत्ति से बचना ही अच्छा रहता है। किंतु यदि प्रश्न की प्रकृति ही ऐसी हो कि उसमें विभिन्न वस्तुओं का आपसी संबंध या वर्गीकरण आदि दिखाए जाने की ज़रूरत हो तो रेखाचित्र का प्रयोग सहायक भी हो सकता है। उदाहरण के लिये, अगर एथिक्स के प्रश्नपत्र में पूछ लिया जाए कि “अपराध और पाप की धारणाओं में अंतर स्पष्ट करें। क्या यह ज़रूरी है कि हर अपराध पाप हो और हर पाप अपराध?” तो इस प्रश्न के उत्तर में दो अवधारणाओं का संबंध स्पष्ट करने के लिये वेन डाइग्राम का प्रयोग कर लेना चाहिये। कई जटिल अवधारणाओें में अंतर जितनी आसानी से किसी डायग्राम के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है, उतनी आसानी से लिखित शब्दों के माध्यम से नहीं।सार यह है कि जहाँ विभिन्न धारणाओं के पारस्परिक संबंधों या वर्गीकरण आदि को स्पष्ट करना हो, वहाँ रेखाचित्र शैली का प्रयोग करना हमेशा फायदेमंद होता है किंतु शुद्ध विश्लेषणात्मक प्रश्नों में ऐसे प्रयोगों से बचना चाहिये।
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