#21days_Course
Day - 2
पहले दिन मैंने आपको यह बताया था कि आयोग आपसे क्या चाहता है और निबंध प्रश्न पत्र की तैयारी कैसे करें आज मैं आपको आंसर राइटिंग की मूलभूत जानकारियां देने जा रहा हूं
उत्तर-पुस्तिका की जाँच करने वाले परीक्षक को इस बात की बिल्कुल जानकारी नहीं होती कि उत्तर-पुस्तिका किस उम्मीदवार की है, उसने कितनी गंभीरता से पढ़ाई की है या उसकी परिस्थितियाँ कैसी हैं इत्यादि। परीक्षक के पास अभ्यर्थी के मूल्यांकन का एक ही आधार होता है और वह यह कि अभ्यर्थी ने अपनी उत्तर-पुस्तिका में किस स्तर के उत्तर लिखे हैं? अगर आपके उत्तर प्रभावी होंगे तो परीक्षक अच्छे अंक देने के लिये मजबूर हो जाएगा और यदि उत्तरों में दम नहीं है तो फिर आपने चाहे जितनी भी मेहनत की हो, उसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकलेगा। आपकी सफलता या विफलता में तैयारी की भूमिका 50% से अधिक नहीं है। शेष 50% भूमिका इस बात की है कि परीक्षा के तीन घंटों में आपका निष्पादन कैसा रहा? आपने कितने प्रश्नों के उत्तर लिखे? किस क्रम में लिखे, बिंदुओं में लिखे या पैरा बनाकर लिखे, रेखाचित्रों की सहायता से लिखे या उनके बिना लिखे, साफ-सुथरी हैंडराइटिंग में लिखे या अस्पष्ट हैंडराइटिंग में, उत्तरों में तथ्यों और विश्लेषण का समुचित अनुपात रखा या नहीं- ये सभी वे प्रश्न हैं जो आपकी सफलता या विफलता में कम से कम 50% भूमिका निभाते हैं। दुर्भाग्य की बात यह है कि अधिकांश उम्मीदवार इतने महत्त्वपूर्ण पक्ष के प्रति प्रायः लापरवाही बरतते हैं और उनमें से कई तो अपने कॉलेज के बाद के जीवन का पहला उत्तर मुख्य परीक्षा में ही लिखते हैं।यूपीएससी मुख्य परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति वर्णनात्मक होती है जिसमें प्रश्नों के उत्तर को निर्धारित शब्दों (सामान्यत:100 से 300 शब्द) में उत्तर-पुस्तिका में लिखना होता है, अत: ऐसे प्रश्नों के उत्तर लिखते समय लेखन शैली एवं तारतम्यता के साथ-साथ समय प्रबंधन आदि पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। लेखन शैली एवं तारतम्यता का विकास सही दिशा में निरंतर अभ्यास से संभव है, जिसके लिये अभ्यर्थियों को विषय की व्यापक समझ के साथ-साथ कुछ महत्त्वपूर्ण बातों का भी ध्यान रखना चाहिये। हमारा उद्देश्य यही समझाना है कि उम्मीदवारों को शुरू से ही उत्तर-लेखन शैली के विकास के लिये क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिये?
उत्तर-लेखन के विभिन्न चरण:
उत्तर-लेखन की संपूर्ण प्रक्रिया को नीचे दिये गए चार चरणों में विभाजित करके समझा जा सकता है-
प्रश्न को समझना तथा सुविधा के लिए उसे कई टुकड़ो में बाँटना
उत्तर की रूपरेखा तैयार करना
उत्तर लिखना
उत्तर के प्रस्तुतीकरण को आकर्षक बनाना।
प्रश्न को समझना तथा टुकड़ो में बाँटना
उत्तर-लेखन प्रक्रिया का सबसे पहला चरण यही है कि उम्मीदवार प्रश्न को कितने सटीक तरीके से समझता है तथा उसमें छिपे विभिन्न उप-प्रश्नों तथा उनके पारस्परिक संबंधों को कैसे परिभाषित करता है? सच तो यह है कि आधे से अधिक अभ्यर्थी इस पहले चरण में ही गंभीर गलतियाँ कर बैठते हैं।प्रश्न को समझने का अर्थ यह है कि प्रश्नकर्त्ता हमसे क्या पूछना चाहता है? कई बार प्रश्न की भाषा ऐसी होती है कि हम संदेह में रहते हैं कि क्या लिखें और क्या छोड़ें? इस समस्या का निराकरण करने के लिये प्रश्न को समझने की क्षमता का विकास करना आवश्यक है।प्रश्न को ठीक से समझने के लिये मुख्यतः दो बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिये-
प्रश्न के अंत में किस शब्द का प्रयोग किया गया है।
प्रश्न के कथन में कितने तार्किक हिस्से विद्यमान हैं और उन सभी में आपसी संबंध क्या हैं?
प्रश्न के अंत में दिये गए शब्दों से आशय उन शब्दों से है जो बताते हैं कि प्रश्न के संबंध में अभ्यर्थी को क्या करना है? ऐसे शब्दों में विवेचन कीजिये, विश्लेषण कीजिये, प्रकाश डालिये, व्याख्या कीजिये, मूल्यांकन कीजिये, आलोचनात्मक मूल्यांकन, परीक्षण, निरीक्षण, समीक्षा, आलोचना, समालोचना, वर्णन/विवरण एवं स्पष्ट कीजिये/स्पष्टीकरण दीजिये इत्यादि शामिल हैं।इन शब्दों के आधार पर तय होता है कि परीक्षक अभ्यर्थी से उत्तर में क्या उम्मीद कर रहा है? यह सही है कि बहुत से परीक्षक खुद ही इन शब्दों के प्रति हमेशा चौकस नहीं रहते, किंतु अभ्यर्थियों को यही मान कर चलना चाहिये कि परीक्षक इन्हीं शब्दों को आधार बनाकर ही उत्तर का मूल्यांकन करते हैं। इसको ध्यान में रखते हुए हमने कुछ महत्त्वपूर्ण शब्दों को विभिन्न वर्गों में बाँटकर उसके सही आशय को स्पष्ट किया है जिससे आपके उत्तर को एक सही दिशा मिल सके।
व्याख्या/वर्णन/विवरण/स्पष्ट कीजिये/ स्पष्टीकरण दीजिये/प्रकाश डालिये:
इन सभी शब्दों से प्रायः समान आशय व्यक्त होते हैं।ऐसे प्रश्नों में अभ्यर्थी से सिर्फ इतनी अपेक्षा होती है कि वह पूछे गए प्रश्न से संबंधित जानकारियाँ सरल भाषा में व्यक्त कर दे।वर्णन और विवरण वाले प्रश्नों में तथ्यों की गुंजाइश ज़्यादा होती है जबकि ‘व्याख्या कीजिये’, ‘प्रकाश डालिये’ या ‘स्पष्टीकरण दीजिये’ वाले प्रश्नों में पूछे गए विषय को सरल भाषा में समझाते हुए लिखने की अपेक्षा होती है।
आलोचना/समीक्षा/समालोचना/परीक्षा/परीक्षण/निरीक्षण/गुण-दोष विवेचनः
इन सभी प्रश्नों को एक वर्ग में रखा जा सकता है।ऐसे प्रश्न उम्मीदवार से किसी तथ्य या कथन की अच्छाइयों और बुराइयों की गहरी समझ की अपेक्षा करते हैं।
आलोचना शब्द से यह भाव ज़रूर निकलता है कि अभ्यर्थी को इसमें पूछे गए विषय से जुड़ी नकारात्मक बातें लिखनी हैं किंतु सच यह है कि आलोचना का सही अर्थ गुण और दोष दोनों पक्षों पर ध्यान देना है। मोटे तौर पर अनुपात यह रखा जा सकता है कि समीक्षा/समालोचना/परीक्षा/परीक्षण/निरीक्षण जैसे प्रश्नों में अच्छे और बुरे पक्षों का अनुपात लगभग बराबर रखा जाए जबकि आलोचना वाले प्रश्नों में नकारात्मक पक्षों का अनुपात कुछ बढ़ा दिया जाए अर्थात् 70-75% तक कर दिया जाए।
मूल्यांकन/आलोचनात्मक मूल्यांकनः
मूल्यांकन का अर्थ है किसी कथन या वस्तु के मूल्य का अंकन या निर्धारण करना।ऐसे प्रश्नों में अभ्यर्थी से अपेक्षा होती है कि वह पूछे गए विषय का सार्वकालिक या वर्तमान महत्त्व रेखांकित करे, उसकी कमियाँ भी बताए और अंत में स्पष्ट करे कि उस कथन या वस्तु की समग्र उपयोगिता कितनी है?मूल्यांकन से पहले आलोचनात्मक लिखा हो या नहीं, तार्किक रूप से दोनों बातों को एक ही समझना चाहिये। मूल्यांकन की कोई भी गंभीर प्रक्रिया तभी पूरी हो सकती है जब उसके मूल में आलोचनात्मक पक्ष का ध्यान रखा गया हो। सार यह है कि आलोचनात्मक मूल्यांकन वाले प्रश्नों में अभ्यर्थी को पहले गुण और दोष बताने चाहियें और अंत में उन दोनों की तुलना के आधार पर यह स्पष्ट करना चाहिये कि उस कथन या वस्तु का क्या और कितना महत्त्व है?
विवेचन/मीमांसाः
मीमांसा का अर्थ होता है किसी विषय को व्यवस्थित तथा संपूर्ण रूप में प्रस्तुत करना। ऐसे प्रश्नों का उत्तर लिखना कठिन नहीं होता। उस प्रश्न से संबंधित सभी संभव पक्षों को मिलाकर लिख देना पर्याप्त होता है। विवेचन वाले प्रश्नों में भी मूल अपेक्षा यही होती है।अंतर सिर्फ इतना होता है कि इसमें किसी कथन या तथ्य की चर्चा करते हुए तार्किक व्याख्या की ज़्यादा अपेक्षा होती है।
विश्लेषणः
विश्लेषण तथा संश्लेषण परस्पर विरोधी शब्द हैं। जहाँ संश्लेषण का अर्थ बिखरी हुई चीज़ों को जोड़कर एक करना होता है, वहीं विश्लेषण का अर्थ होता है- किसी एक विचार या कथन को सरल से सरल हिस्सों में विभाजित करना। किसी कथन का विश्लेषण करते हुए अभ्यर्थी को अपने मन में क्या, क्यों, कैसे, कब, कहाँ, कितना जैसे संदर्भों को आधार बनाना चाहिये।
प्रश्नों का तार्किक विखंडन:
सरल भाषा में कहें तो तार्किक विखंडन का अर्थ है जटिल वाक्य को कुछ सरल वाक्यों में तोड़कर उसमें अंतर्निहित उप-प्रश्नों की पहचान करना। सरल कथनों में तो यह समस्या सामने नहीं आती किंतु जैसे ही जटिल वाक्य-संयोजन वाले प्रश्न उपस्थित होते हैं, अभ्यर्थी के समक्ष उनकी व्याख्या और अर्थ-बोध से जुड़ी कठिनाइयाँ प्रकट होने लगती हैं।ऐसी स्थिति में अभ्यर्थी को मुख्य रूप से उन मात्रा-सूचक या तीव्रता-सूचक शब्दों पर ध्यान देना चाहिये जो प्रश्न का फोकस निर्धारित करते हैं। उदाहरण के लिये, यदि प्रश्न है कि “1975 में घोषित राष्ट्रीय आपातकाल स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे विवादास्पद समयों में से एक के रूप में देखा जाता है।’ मूल्यांकन कीजिये।” तो इसमें ‘सबसे विवादास्पद समयों में से एक’ वाक्यांश पर सर्वाधिक ध्यान दिया जाना चाहिये। इसमें निहित है कि आपातकाल स्वतंत्र भारत के इतिहास का अकेला विवादास्पद समय नहीं रहा है बल्कि कई विवादास्पद समयों में से एक है। इसके साथ-साथ, इसमें यह भी निहित है कि इस प्रश्न में अभ्यर्थी को हर विवादास्पद समय पर टिप्पणी नहीं करनी है बल्कि उन गिने-चुने विवादास्पद समयों पर चर्चा करनी है जिनकी तुलना में शेष विवादास्पद समय कम तीव्रता वाले रहे हैं।इस प्रश्न में अभ्यर्थी को दिये गए कथन का विखंडन कई उप-प्रश्नों में करना होगा, जैसे- 1975 का आपातकाल अत्यंत विवादास्पद काल क्यों माना जाता है, स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे अधिक विवादास्पद काल कौन-कौन से माने जा सकते हैं, तथा सर्वाधिक विवादास्पद कालों की तुलना में 1975 के आपातकाल की क्या स्थिति रही है?
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